Monday, September 29, 2014

Satsang (सत्संग) दिनभरमें वह कार्य कर लें, जिससे रातमें सुखसे रह सके और आठ महीनोंमें वह कार्य कर ले, जिससे वर्षाके चार महीने सुखसे व्यतीत कर सके । पहली अवस्थामें वह कार्य करे, जिससे वृद्धावस्थामें सुखपूर्वक रह सके और जीवनभर वह कार्य करे, जिससे मरनेके बाद भी सुखसे रह सके । महाभारत, उधोग. ३५।६७-६८ ........ नित्य वृद्धजनोंको प्रणाम करनेसे तथा उनकी सेवा करनेसे मनुष्यकी आयु, विद्या (बुद्धि, कीर्ति), यश और बल बढ़ते हैं। - मनुस्मृति २।१२१, भविष्यपुराण, महाभारत ........ तिल, कुश और तुलसी – ये तीन पदार्थ मरणासन्न व्यक्तिकी दुर्गतिको रोककर उसे सद्‍गति दिलाते हैं। - गरुडपुराण .......... बुद्धिमान्‌ मनुष्यको राजा, ब्राह्मण, वैध, मूर्ख, मित्र, गुरु और प्रियजनोंके साथ विवाद नहीं करना चाहिये। - चाणक्यसुत्र ३५२ .......... कबिरा सब जग निर्धना धनवंता नहिं कोय । धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥ ........ जो केवल अपने लिये ही भोजन बनाता है, जो केवल काम-सुखके लिये ही मैथुन करता है और जो केवल आजीविका प्राप्त करनेके लिये ही पढाई करता है, उसका जीवन निष्फल है। - लघुव्याससंहिता ८१-८२ व्यायाम, रात्रि-जागरण, पैदल चलना, मैथुन, हँसना और बोलना – इन्हें अधिक मात्रामें करनेपर मनुष्य नष्ट हो जाता है। ........ विष्णुके मन्दिरकी चार बार, शंकरके मन्दिरकी आधी बार, देवीके मन्दिरकी एक बार, सूर्यके मन्दिरकी सात बार और श्रीगणेशके मन्दिरकी तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये । - नारदपुराण .......... पं सुशील मिश्रा !!. जय श्री राम. ..!!

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