Sunday, December 10, 2017

ЁЯМ┐!!рд╡ंрджे рд╕ंрд╕рдХृрдд рдоाрддрд░рдо्!!ЁЯМ┐

शुष्ठु भाषा संस्कृतं,सौम्य भाषा संस्कृतम्!
सर्वसौख्यदायिनी,विशुद्ध भाषा संस्कृतम्!!
🙏जयतु संस्कृतम्🙏
#संस्कृतम्!!

Tuesday, August 8, 2017

ЁЯМ║"рдЬрдпрддु рд╕ंрд╕्рдХृрддрдо्"ЁЯМ║

*सुमंगलम्"*
*🌅,🙏,सुप्रभातम, ,🙏,🌅*
श्रावणी पर्व रक्षाबन्धनोत्सवस्य संस्कृतदिवसस्य च सर्वेभ्यः हार्दिक्यः शुभकामनाः।
ओम् यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
*शुक्लयजुर्वेदीय रक्षाबंधनम्*"
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।

अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसे रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है।
यत्र संस्कृतं भवति
तत्र संस्कारस्तु स्वयमेव भवति।
*नास्ति संस्कृत समो भाषा,नास्ति संस्कृत समो निधिः"!*
*नास्ति संस्कृत समो ज्ञानम्,नास्ति संस्कृत समो गतिः"!!*
संस्कृतदिवसस्य शुभावसरे समृद्धसंस्कृतस्य मङ्गलकामनाभिः सह सर्वेभ्यः अतीव् शुभकामना:।
*🌺"जयतु संस्कृतम्"🌺*
*🙏🏻"सर्व भाषासु मातरम्,*
*वंदे संस्कृत मातरम्"🙏🏻*
*#शुभदिनमस्तु",🙏🏻,🌅,🙏🏻,*
*(सु.मिश्रः)*

Sunday, July 30, 2017

рд╣рд░ि:реРрддрдд्рд╕рдд् рд╕рд░्рд╡ेрдн्рдпो рдирдоो рдирдо:"!!

*🙏🏻हरि:ॐतत्सत् सर्वेभ्यो नमो नम:"!!🙏🏻*
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:। यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।।
ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।
रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयति इति रुद्र:।
*रुद्रहृदयोपनिषदम्"*
*🔱हर हर महादेव🔱*
*"ॐ"नमः शिवाय"*
*सर्वे संतु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यंतु च"*
*🌅🌅"सुप्रभातम्"🌅🌅*
*शुभदिनमस्तु"!!*

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*हरि:ॐतत्सत् सर्वेभ्यो नमो नम:"!!*
*🌅🌅"सुप्रभातम्"🌅🌅*
*‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’*, सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। 
*अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।*
*सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।”*
मैं शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- *‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत*।
शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ -जिसे सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। 
आप सभी का दिन शुभ एवं कल्याणकारी हो"!!
*🔱हर हर महादेव🔱*
*"ॐ नमः शिवाय"*
*🥀शुभदिनमस्तु"!!🥀*

ЁЯМ┐рдЬीрд╡рди-рд╕ूрдд्рд░ाрдгिЁЯМ┐

*🌿जीवन-सूत्राणि🌿*
(१.)
“किंस्वद् गुरूत्तरं भूमेः किंस्विदुच्चतर च खात् ।
किंस्वित् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ।।”

अर्थः–भूमि से भारी क्या है ? आकाश से ऊँचा क्या है ? वायु से तेज क्या है ? घास से भारी क्या है ?

उत्तरः—
“माता गुरूत्तरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ।।”

अर्थः–माता भूमि से भारी है । पिता आकाश से ऊँचा है । मन वायु से तेज है । चिन्ता घास से भारी है ।

(२.)
“किंस्वित् प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्वित् मित्रं मरिष्यतः ।।”

अर्थः–प्रवास में रहते हुए मित्र कौन है ? घर में रहते हुए मित्र कौन है ? रोगी का मित्र कौन है ? मरे हुए का मित्र कौन है ?

उत्तरः—
“सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ।।”

अर्थः—व्यापारी प्रवास में रहते हुए मित्र है । घर में पत्नी मित्र है । रोगी का मित्र औषधि है । मरने वाले का मित्र उसके द्वारा दिया गया दान है ।

(३.)
“किंस्विदेकपदं धर्म्यं किंस्विदेकपदं यशः ।
किंस्विदेकपदं स्वर्ग्यं किंस्विदेकपदं सुखम् ।।”

अर्थः—धर्म करने के योग्य एकपद क्या है ? एकमात्र यश क्या है ? स्वर्ग में जाने का एकमात्र मार्ग कौन सा है ? सुख प्राप्त करने का एकमात्र उपाय क्या है ?

उत्तरः–
“दाक्ष्यमेकपदं धर्म्यं दानमेकपदं यशः ।
सत्यमेकपदं स्वर्ग्यं शीलमेकपदं सुखम् ।।”

अर्थः—धर्म करने का एकमात्र उपाय दक्षता (कुशलता) है । योग्य पात्र को दान करने से यश बढता है । स्वर्ग जाने का एकमात्र मार्ग सत्य है । सुख प्राप्त करने का एकमात्र उपाय शील (चरित्र) है ।

(४.)
“धान्यानामुत्तमं किंस्वद् धनानां स्यात् किमुत्तमम् ।
लाभानामुत्तमं किं स्यात् सुखानां स्यात् किमुत्तमम् ।।”

अर्थः—धान्यों (अन्न, फसल) में उत्तम धान्य क्या है ? धनों में उत्तम धन क्या है ? लाभों में उत्तम लाभ क्या है ? सुखों में उत्तम सुख क्या है ?

उत्तरः—
“धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् ।
लाभानां श्रेय आरोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा ।।”

अर्थः—धान्यों में उत्तम धान्य दक्षता (चतुरता) है । धनों में उत्तम धन वेदों का श्रवण है । लाभों में श्रेष्ठ लाभ आरोग्य (स्वस्थता) है । सुखों में उत्तम सुख संतुष्टि है ।

(५.)
“किं नु हित्वा प्रियो भवति ? किन्नु हित्वा न शोचति ?
किं नु हित्वार्थवान् भवति ? किन्नु हित्वा सुखी भवेत् ?”

अर्थः–किसको छोडकर व्यक्ति प्रिय होता है ? क्या छोडकर चिन्ता नहीं होती है ? क्या छोडकर व्यक्ति अर्थवान् (धनी) हो जाता है ? क्या छोडकर व्यक्ति सुखी होता है ?

उत्तरः—
“मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति ।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत् ।”

अर्थः–घमण्ड को छोडकर व्यक्ति  सबका प्रिय हो जाता है । क्रोध को छोड देने से चिन्ता नहीं होती । काम (वासना, इच्छा) को छोड देने से व्यक्ति अर्थवान् हो जाता है । लोभ को छोड देने से व्यक्ति सुखी हो जाता है "!!
🌸🌅🌅🌸
🍁सुंदर दिवसाच्या सुंदर शुभेच्छा🍁
              🍁🌹🍁
*शुभदिनमस्तु"!!*

*!!"рд╢्рд░ाрд╡рдгрд╢ुрдХ्рд▓ाрд╕рдк्рддрдоी,рддुрд▓рд╕ी рдзрд░рдпो рд╢рд░ीрд░"!!

*!!"श्रावणशुक्लासप्तमी,तुलसी धरयो शरीर"!!*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*श्री गोस्वामी तुलसीदास प्राकट्य दिवसस्य,अवधी दिवसस्य च भवतां सर्वेषां कृते हार्दिक्यः शुभाशयाः"!!*
प्रिय मित्राणि
अद्यश्रीगोस्वामीतुलसीदासस्य  
जन्मदिवसः अस्ति"
आगम्‍यतां सर्वेजनाः तस्‍य कृते श्रद्धासुमनानि अर्पयाम: । 
तुलसीदास जी का श्रीरामचरितमानस अवधी साहित्य की प्रमुख कृति है। इसीलिए तुलसीदास जयंती के दिन ही अवधी दिवस भी मनाया जाता है"!!
अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश मे "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़) तथा फतेहपुर, मिरजापुर, जौनपुर आदि कुछ अन्य जिलों में भी बोली जाती है।
हिंदी में कोई काव्‍य कृति इतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितना कि तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस'। आज भी रामचरितमानस श्‍वास की तरह प्रत्‍येक हिंदू परिवार का अभिन्‍न अंग है।
जिन्होंने आमजनमानस के लिए बड़े ही सरल और सुलभ शब्दों में मानस की रचना कर जगत को प्रभु श्रीराम के गुणगान का वर्णन कर हम सबको कृतार्थ किया।
रामचरितमानस को देख कर मधुसूदन सरस्वती जी महाराज लिखते हैं"!
*आनन्दकानने ह्यास्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतरुः"!कवितामञ्जरी भाति रामभ्रमरभूषिता*!!
इसका हिन्दी में अर्थ इस प्रकार है-"काशी के आनन्द-वन में तुलसीदास साक्षात् चलता-फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी काव्य-मञ्जरी बड़ी ही मनोहर है, जिस पर श्रीराम रूपी भँवरा सदा मँडराता रहता है।"
पूज्यपाद श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को कोटिश: नमन्"🙏"
महात्‍मा तुलसिदासस्‍य जय: भवतु"!
भगवत: श्रीरामस्‍य जय: भवतु"!!
एकदा पुनः तुलसिदासजन्‍मोत्‍सवस्‍य भवतां सर्वेषां कृते हार्दिकी शुभकामना: ।। 
सीयराममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी ॥
(श्रीरामचरितमानस)
*🚩ॐनमों राघवाय*🚩
*🌅शुभदिनमस्तु"*🌅
"सुशील मित्रः"🙏🏻,

Tuesday, January 10, 2017

!! рдЖрджि рдХрд╡ि рднрдЧрд╡ाрди рд╡ाрд▓्рдоीрдХि !!

!! *आदि कवि भगवान वाल्मीकि*!!
एकदा वने एकेन किरातेन क्रौञ्चमिथुनादेकः नरक्रौञ्चः हन्यते । तदनन्तरं क्रौञ्च्याः विलापं आर्तनादं च दृष्ट्वा क्रोधेन पीड़या वा कुपितः वाल्मीकिः तस्मै किराताय शापं ददाति"!!

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥'

एक बार वन में एक बहेलिये ने मैथुनरत क्रौंच पक्षी के जोड़े में से नर को मार दिया और मादा के आर्तनाद विलाप को देखकर बाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ" उसी समय उनके मुख से संस्कृत के ये शब्द श्लोक के रूप में निकले और बहेलिये को श्राप साबित हुए"!
और यही शब्द ब्रह्मा जी के कानों में पड़े उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ प्रगट हो कर उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा दी थी"!!
((निषाद)अरे बहेलिये,! (यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्) तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है ! जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं (मा प्रतिष्ठा त्वगमः) हो पायेगी)
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणस्य प्रतिष्ठा वेदतुल्येव अस्ति ।
रामायणे इक्ष्वाकुवंशप्रभवस्य मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामस्य चरितं वर्णितम् अस्ति । महाकाव्येऽस्मिन् २४,००० श्लोकाः सन्ति"!
महाकाव्येऽस्मिन् कथा सप्तकाण्डेषु विभक्ता अस्ति"!
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
एतदाख्यानमायुष्यं  पठन् रामायणं नरः।
सपुत्रपौत्रस्सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते ॥
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च संमितम् | यः पठेद्रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते || 
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वैसे तो रामायण लिखने के पूर्व बाल्मीकि जी दस्यु कार्य करते थे, ऐसा माना जाता है, किन्तु" वाल्मीकि जी ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :

प्रेचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किल्विषम्।।

हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हूँ और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
ॐ वाल्मीकायै नमः!!
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥��������������
*सर्वेषां मंगलम् भवतु*"
*सुशील मिश्रः*"