Friday, May 18, 2012

वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है |.समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है |सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है| वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है| वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर सूर्य देव की स्तुति की गई है | पुराणों में सूर्य की उत्पत्ति ,प्रभाव ,स्तुति मन्त्र इत्यादि का वर्णन है | ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है | प्रस्तुत लेख में सूर्य का पुराणों एवम ज्योतिष साहित्य के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया है |
सूर्य देव की उत्पत्ति
मार्कंडेय पुराण के अनुसार पहले यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश रहित था | उस समय कमलयोनि ब्रह्मा जी प्रगट हुए | उनके मुख से प्रथम शब्द ॐ निकला जो सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप था | तत्पश्चात ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद प्रगट हुए जो ॐ के तेज में एकाकार हो गये |
यह वैदिक तेज ही आदित्य है जो विश्व का अविनाशी कारण है| ये वेद स्वरूप सूर्य ही श्रृष्टि की उत्पत्ति ,पालन व संहार के कारण हैं | ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने महातेज को समेट कर स्वल्प तेज को ही धारण किया |
श्री राम स्तुति

श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारूणम
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारूणमऽऽ

कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरद सुंदरम
पटपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनकसुतावरमऽऽ

भज दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकंदनम
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथनंदनमऽऽ

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारू अंगविभूषणम
आजानुभुज शरचाप धर संग्रामजित खरदूषणमऽऽ

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम
मम हृदयकुंज निवास कुरू कामादि खलदल गंजनमऽऽ

Saturday, March 31, 2012

Aapko aur apke parivaar ko Rama Navami ki haardik shubhkaamnaye.
नीलाम्बुजश्यामल कोमलांङ्गं सीतासमारोपित वामभागम्।

पाणौ महासाकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।***जय श्री  राम ***

Friday, March 30, 2012

**मंगल भवन अमंगल हारी / उमा सहित  जेहि जपत पुरारी //**
                           ** जय भोले नाथ** हर हर महादेव ..                             *.सुशील मिश्रा*

Saturday, March 24, 2012


भक्तों का कल्याण करने के लिये माता नौ रुपों में प्रकट हुई. इन नौ रुपों में से नवम रुप माता सिद्धिदात्री का है. यह देवी अपने भक्तोम को सारे जगत की रिद्धि सिद्धि प्रदान करती है. माता के इन नौ रुपों की न केवल मनुष्य बल्कि देवता, ऋषि, मुनि, सुर, असुर, नाग सभी उनके आराधक है. माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों के रोग, संताप व ग्रह बधाओं को दुर करने वाली कही गई है.

इस प्रकार नवरात्रों के नौ दिनों में माता के अलग अलग रुपों की पूजा की जाती है.

माता का आंठवा रुप माता महागौरी का है. एक पौराणिक कथा के अनुसार शुभ निशुम्भ से पराजित होने के बाद गंगा के तट पर देवता माता महागौरी की पूजा कर रहे थे, और राक्षसों से रक्षा करने की प्रार्थना कर रहे थे, इसके बाद ही माता का यह रुप प्रकट हुआ और देवताओं की रक्षा हुई. इस माता के विषय में यह मान्यता है कि जो स्त्री माता के इस रुप की पूजा करती है, उस स्त्री का सुहाग सदैव बना रहता है. कुंवारी कन्या पूजा करें, तो उसे योग्य वर की प्राप्ति होती है. साथ ही जो पुरुष माता के इस रुप की पूजा करता है, उसका जीवन सुखमय रहता है. माता महागौरी अपने भक्तों को अक्षय आनन्द ओर तेज प्रदान करती है.

तापसी गुणों स्वरुपा वाली मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. माता के सांतवें रुप को माता कालरात्रि के नाम से जाना जाता है. देवी का यह रुप ऋद्धि व सिद्धि प्रदान करने वाला कहा गया है. यह तांत्रिक क्रियाएं करने वाले भक्तों के लिये विशेष कहा गया है. दुर्गा पूजा मेम सप्तमी तिथि को काफी महत्व दिया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिये देवी मां का दरवाजे खुल जाते है. और भक्तों की भीड देवी के दर्शनों हेतू जुटने लगती है.

माता का छठा रुप माता कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. ऋषि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पडा. माता कात्ययानी ने ही देवी अंबा के रुप में महिषासुर का वध किया था. नवरात्रे के छठे दिन इन्हीं की पूजा कि जाती है. इनकी पूजा करने से भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

**पंचमी तिथि को माता स्कन्द देवी की पूजा की जाती है. नवरात्रे के पांचवे दिन कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा भी की जाती है. कुमार कार्तिकेय को ही स्कन्द कुमार के नाम से भी जाना जाता है. इसलिये इस दिन कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा आराधना करना शुभ कहा गया है. जो भक्त माता के इस स्वरुप की पूजा करते है, मां उसे अपने पुत्र के समान स्नेह करती है. देवी की कृ्पा से भक्तों की मुराद पूरी होती है. और घर में सुख, शान्ति व समृ्द्धि वृ्द्धि होती है. **
मां दुर्गा के नव रूपों में चौथा रूप है कूष्माण्डा देवी का (Durga Devi Chaturth Roop Devi Kushmanda). दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा जी की पूजा का विधान है

देवी कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है.

इस दिन भक्त का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए. संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है.
देवी दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. दुर्गा पूजा के तीसरे दिन आदि-शक्ति दुर्गा के तृतीय स्वरूप माँ चंद्रघंटा की पूजा होती है.

देवी चन्द्रघण्टा भक्त को सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं. इस दिन का दुर्गा पूजा में विशेष महत्व बताया गया है तथा इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है. माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक एवं दिव्य सुगंधित वस्तुओं के दर्शन तथा अनुभव होते हैं, इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है यह क्षण साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं.

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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री: पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री कहलाया है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी: नवदुर्गाओं में दूसरी दुर्गा का नाम ब्रह्मचारिणी है। इसकी पूजा-अर्चना द्वितीया तिथि के दौरान की जाती है। सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना आदि विद्याओं की ज्ञाता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। इसका स्वरूप सफेद वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है, जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्नन विद्या देकर विजयी बनाती है ।
तृतीय चन्द्रघंटा: शक्ति के रूप में विराजमान चन्द्रघंटा मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती है। इसके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इसके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दोनों हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख सम्पदा का वरदान देती है।
चतुर्थ कूष्मांडा: त्रिविध तापयुत संसार में कुत्सित ऊष्मा को हरने वाली देवी के उदर में पिंड और ब्रह्मांड के समस्त जठर और अग्नि का स्वरूप समाहित है। कूष्माण्डा देवी ही ब्रह्मांड से पिण्ड को उत्पन्न करने वाली दुर्गा कहलाती है। दुर्गा माता का यह चौथा स्वरूप है। इसलिए नवरात्रि में चतुर्थी तिथि को इनकी पूजा होती है। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुई अष्टभुजाधारी मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट वाली एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इसके अन्य हाथों में कमल, सुदर्शन, चक्र, गदा, धनुष-बाण और अक्षमाला विराजमान है। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग शोक और विनाश से मुक्त करके आयु यश बल और बुद्धि प्रदान करती है।
पंचम स्कन्दमाता: श्रुति और समृद्धि से युक्त छान्दोग्य उपनिषद के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कन्द है। अतः उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचवीं दुर्गा स्कन्दमाता के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में इसकी पूजा-अर्चना का विशेष विधान है। अपने सांसारिक स्वरूप में यह देवी सिंह की सवारी पर विराजमान है तथा चतुर्भज इस दुर्गा का स्वरूप दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनत्कुमार को थामे हुए है। यह दुर्गा समस्त ज्ञान-विज्ञान, धर्म-कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती है।
षष्टम कात्यायनी: यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के स्वरूप पालन पोषण किया साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। यह दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। वैदिक युग में यह ऋषिमुनियों को कष्ट देने वाले प्राणघातक दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थी। सांसारिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती है। इसके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।
सप्तम कालरात्रि : अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होने के कारण इसका नाम कालरात्रि पड़ गया। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानी काले रंग रूप की अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा है, जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती है। इसकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच ही अपने विकट रूप में नजर आती है। इसकी सवारी गंधर्व यानी गधा है, जो समस्त जीवजंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। कालरात्रि की पूजा नवरात्र के सातवें दिन की जाती है। इसे कराली भयंकरी कृष्णा और काली माता का स्वरूप भी प्रदान है, लेकिन भक्तों पर उनकी असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा ही प्रदान करती है।
अष्टम महागौरी: नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा-अर्चना और स्थापना की जाती है। अपनी तपस्या के द्वारा इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। अतः इन्हें उज्जवल स्वरूप की महागौरी धन, ऐश्वर्य, पदायिनी, चैतन्यमयी, त्रैलोक्य पूज्य मंगला शारिरिक, मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया है। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सदा सुख और शान्ति देती है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इसके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन-वैभव और सुख-शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इसका स्वरूप बहुत ही उज्जवल, कोमल, सफेदवर्ण तथा सफेद वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है, जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है।
नवम सिद्धिदात्री: नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है और हाथों में कमल शंख गदा सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है। देव यक्ष किन्नर दानव ऋषि-मुनि साधक विप्र और संसारी जन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नवें दिन करके अपनी जीवन में यश बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री देवी उन सभी महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती हैं, जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं, उनको इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है, जो सफेद वस्त्रालंकार से युक्त महा ज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। नवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप को विसर्जन की परम्परा भी गंगा, नर्मदा, कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परम्परा भी है। नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है।**

दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रहमचारिण्यनुत्तमा।

Friday, March 23, 2012


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।
तृतीयं चन्दघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

Thursday, March 22, 2012


जीवन का सबसे सुंदर रंग प्रेम हे ये ऐसा रंग हे जिसमें हर कोई रंगना चाहता हे जीना चाहता हे ! जिस घर में प्रेम नहीं हे ,श्रधा नहीं हे ,विश्वास नहीं हे तो फिर वह घर खुशियां नहीं देता ! विश्वास ,प्रेम के धागे को बांधे हुए हे ! यदि विश्वास टूट गया तो प्रेम के धागे भी टूट जाते हें !

Tuesday, March 20, 2012

*navratri aur gudi padwa ki hardik shubh kamna*

Maa durga apko apni 9 bhujao se: 1. bal 2. buddhi 3. aishwarya 4. sukh 5. swasthya 6. daulat 7. abhijeet 8. nirbhikta 9. sampannta pradan kare JAI MATA DI.

Sunday, February 26, 2012

जागृति के सूत्र
प्रयास ---स्वयं से कीजिए !
प्रेरणा ----सदगुरु से लीजिए !
प्रभाव ---आत्मा से कीजिए !
प्रसाद -----परमात्मा से लीजिए !

Monday, February 20, 2012

II Hanuman Mantra II

MANOJAVAM
MAARUTATULYAVEGAM
JITENDRIYAM BUDDHIMATAAM
VARISTHAM,

VAATAATMAJAM
VAANARAYOOTHMUKHYAM

SRIRAMDOOTAM SARANAM
PRAPADHYE.

Thursday, February 16, 2012

"Shaantaakaaram Bhujanga Shayanam Padmanaabham Suresham
Vishvaadhaaram Gagana Sadrisham Meghavarnam Shubhaangam
Lakshmiikaantam Kamalanayanam Yogibhidhyaarnagamyam
Vande Vishhnum Bhavabhayaharam Sarvalokaikanaatham"
Shuklaambara Dharam Vishnum, Shashi Varnam Chatur Bhujam
Prasanna Vadanam Dhyaayet, Sarva Vighna Upashaanthaye"
Karaagre Vasate Lakshmi Karamadhye Sarasvati,
Karamuule Tu Govinda Prabhaate Karadarshanam,
Samudravasane Devi Parvatastanamandale,
Vishhnupatni Namastubhyam Paadasparsham Kshamasva Me
"Sarasvathi Namastubhyam, Varade Kaamaroopini
Vidyaarambham Karishyaami, Siddhir Bhavatu Mey Sada"
"Neelambhuj Shyamalkomlang Sita Samaropitvambhagam,
Pano Mahasaikacharoochapam Namame Ramam Raghuvanshnatham"

Sunday, February 12, 2012

DUNIA me reh k sapnon main kho jao,
KISI KO apna banalo YA kisi k ho jao,

Thursday, January 26, 2012

सुख बाहर नहीं उंदर होता है ! बाहर की वस्तुएं न तो सुख देनेवाली हैं न दूख ! यह तो हमारे आन्तरिक भाव पर निर्भर करता है su.ji

Tuesday, January 24, 2012

मानव एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक होने का अर्थ है किसी समाज का हिस्सा होना. हर व्यक्ति की एक अलग society होती है जो उसके अपने relationship पर depend करती है .इसलिए मानव के लिए संबंधों का बहुत अधिक महत्व है जिसके सहारे वो अपना सारा जीवन व्यतीत करता है. . मानव दो तरह के संबंधों से जुड़ा है पहले वो जो जन्म से ही उसके साथ होते हैं औरदूसरे वो जिसे वो अपनी ख़ुशी या पसंद से बनाता है.

आप के माता -पिता या रिश्तेदार कौन होंगे ,आपके स्कूल के principal कौन होंगे, boss कौन होंगे , colleagues कौन होंगे या पड़ोसी कौन होंगे ये आप decide नहीं कर सकते.हाँ !एक ऐसा सम्बन्ध ज़रूर है जिसे आप अपनी इच्छा से चुनते और जोड़ते हैं और वो है ’दोस्ती’. दोस्तहम कई लोगों में से कुछ लोगों को ही बनाते हैं .
माफ़ करना अँधेरे कमरे में रौशनी करने जैसा होता है, जिसकी रौशनी में माफ़ी मांगने वाला और माफ़ करने वाला दोनों एक दूसरे को और करीब से जान पाते हैं. माफ़ करके आप किसी को एक मौका देते हैं अपनी अच्छाइयों को साबित करने का.
तो अगर हम किसी ज़िन्दगी की सूखी ज़मीन पर माफ़ी की दो- चार बूंदों की बारिश कर पायें तो हो सकता है कि उस सूखी ज़मीन पर आशाओं, और मुस्कुराहटों के फूल खिल उठें.
शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है. शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है.यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती हैg.b.
: किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से ज्यादा डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुक्सान पहुंचा सकता है.g.b.
: सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं. अगर मन परिवर्तित हो जाये तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?g.b.
हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है , तो उसे कष्ट ही मिलता है. यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती .g.b.
क्रोध वह तेज़ाब है जो किसी भी चीज जिसपर वह डाला जाये ,से ज्यादा उस पात्र को अधिक हानि पहुंचा सकता है जिसमे वह रखा है.
कोई त्रुटी तर्क-वितर्क करने से सत्य नहीं बन सकती और ना ही कोई सत्य इसलिए त्रुटी नहीं बन सकता है क्योंकि कोई उसे देख नहीं रहा.m.g.
:हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें. हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा.m.g.
जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते.vi.
जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है.vi.
: किसी की निंदा ना करें. अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये.vi.

Sunday, January 15, 2012

Tum Jise Chaho Apna Andaz De Dena

Haq Itna Sa Mujhe Aaj De Dena.

Nazrein Dunia Ki Jab Tumhe Tanha Chhod De

Us Mod Par Mujhe Ek Awaz De Dena…

Monday, January 9, 2012

आपके हिस्से में सुख मिला है या दुःख, इसकी परवाह न करना। जो मिला उसे आप भगवान की कृपा मानकर उसका प्रसाद मानकर स्वीकार करो और आगे बढ़ते जाओ। *