Friday, September 12, 2014

मैले विचार वाला तन धोने से पवित्र नहीं होता ll !! !! !! ‘‘मनि मैले सभ किछु मैला तनि धोतै मनु हछा न होइ।‘ जिस मनुष्य के मन में कुविचार और मैल है वह पूरी तरह से स्वयं ही मैला है। चाहे कितना भी वह तन धो ले पर उसका पवित्र नहीं होगा। ‘‘जाकै बिनसिउ मन ते भरमा। ताकै कछु नाहीं डर जमा।।’’ जिस मनुष्य के मन में कोई भ्रम नहीं रहता उसे मौत का भी डर नहीं रहता।  ‘मनि जीतै जगु जीतु।‘ जिसने मन जीत लिया उसे सारा जग ही जीत लिया।  वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-हमारे अध्यात्म दर्शन में मनुष्य को मन का पंछी बताया जाता है। सच तो यह है कि मनुष्य एक आत्मा है पर देह में स्थित मन उसकी बुद्धि को अपने होने का आभास देता है। इस त्रिगुणमयी माया में मनुष्य का मन उसे इस तरह फंसाये रहता है कि उसकी बुद्धि को वही सच लगता है।  देह का अस्तित्व आत्मा से है पर मन उसे पशु की तरह हांकता चला जाता है और मनुष्य बुद्धि में यह अहसास तक नहीं होता। मन कभी साफ नहीं होता जब तक अध्यात्मिक ज्ञान या भक्ति से आदमी अपनी बुद्धि, मन और अहंकार पर नियंत्रण कर ले। लालच,लोभ,क्रोध और मोह के जाल में फंसा मनुष्य अपना अस्तित्व उस मन से ही अनुभव करता है जो कि उसकी देह का हिस्सा है। अगर कोई मनुष्य ईश्वर की भक्ति दृढ़ भाव से करे तो उसकी बुद्धि स्थिर हो जायेगी और फिर मन काबू में आयेगा। काबू में आने पर ही उसमें शुद्धता लायी जा सकती है वरना तो वह मनुष्य देह में मौजूद अहंकार को बढ़ाकर उसके बंधन में मनुष्य का बांध देता है और फिर पशु की तरह हांकता चला जाता है-मनुष्य को यही भ्रम रहता है कि मैं चल रहा हूं। इस प्रकार के भ्रम पर भक्ति और ज्ञान से विजय पायी जा सकती है अन्यथा नहीं।

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