Monday, September 29, 2014

महाजनस्य संसर्गः, कस्य नोन्नतिकारकः। पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥ ........ हिंदी अनुवाद महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद भी मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है|

कुसुमस्तबकस्येव द्वयीवृत्तिर्मनस्विनः। मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य विशीर्येत वनेऽथवा ।। ...... फूलों की तरह मनस्वियों की दो ही गतियाँ होती हैं; वे या तो समस्त विश्व के सिर पर शोभित होते हैं या वन में अकेले मुरझा जाते हैं॥

मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः। पङ्कच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः॥ ....... बुद्धिमानों के साथ से मंद व्यक्ति भी बुद्धि प्राप्त कर लेते हैं जैसे रीठे के फल से उपचारित गन्दा पानी भी स्वच्छ हो जाता है॥

केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः न स्नानं न विलोपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः। वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता र्धायते क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ ....... बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी सुन्दर प्रकार से शोभा बढ़ाती है। साधारण आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही सनातन आभूषण है॥

क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसारबन्धनम्। धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥ ..... क्रोध समस्त विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है, इसलिए क्रोध को त्याग दें।

Satsang (सत्संग) दिनभरमें वह कार्य कर लें, जिससे रातमें सुखसे रह सके और आठ महीनोंमें वह कार्य कर ले, जिससे वर्षाके चार महीने सुखसे व्यतीत कर सके । पहली अवस्थामें वह कार्य करे, जिससे वृद्धावस्थामें सुखपूर्वक रह सके और जीवनभर वह कार्य करे, जिससे मरनेके बाद भी सुखसे रह सके । महाभारत, उधोग. ३५।६७-६८ ........ नित्य वृद्धजनोंको प्रणाम करनेसे तथा उनकी सेवा करनेसे मनुष्यकी आयु, विद्या (बुद्धि, कीर्ति), यश और बल बढ़ते हैं। - मनुस्मृति २।१२१, भविष्यपुराण, महाभारत ........ तिल, कुश और तुलसी – ये तीन पदार्थ मरणासन्न व्यक्तिकी दुर्गतिको रोककर उसे सद्‍गति दिलाते हैं। - गरुडपुराण .......... बुद्धिमान्‌ मनुष्यको राजा, ब्राह्मण, वैध, मूर्ख, मित्र, गुरु और प्रियजनोंके साथ विवाद नहीं करना चाहिये। - चाणक्यसुत्र ३५२ .......... कबिरा सब जग निर्धना धनवंता नहिं कोय । धनवंता सोइ जानिये जाके राम नाम धन होय ॥ ........ जो केवल अपने लिये ही भोजन बनाता है, जो केवल काम-सुखके लिये ही मैथुन करता है और जो केवल आजीविका प्राप्त करनेके लिये ही पढाई करता है, उसका जीवन निष्फल है। - लघुव्याससंहिता ८१-८२ व्यायाम, रात्रि-जागरण, पैदल चलना, मैथुन, हँसना और बोलना – इन्हें अधिक मात्रामें करनेपर मनुष्य नष्ट हो जाता है। ........ विष्णुके मन्दिरकी चार बार, शंकरके मन्दिरकी आधी बार, देवीके मन्दिरकी एक बार, सूर्यके मन्दिरकी सात बार और श्रीगणेशके मन्दिरकी तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये । - नारदपुराण .......... पं सुशील मिश्रा !!. जय श्री राम. ..!!

सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल.........!! @@@@@@@@@@@ 1- सांप दिखाई देना- धन लाभ 2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि 3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग 4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति 5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति 6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि 7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना 8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल 9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना 10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि 11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा 12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि 13- भाई को देखना- नए मित्र बनना 14- भीख मांगना- धन हानि होना 15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता 16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति 17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना 18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ 19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि 20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना 21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना 22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट 23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि 24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा 25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति 26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि 27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना 28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना 29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति 30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि 31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग 32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति 33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग 34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत 35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय 36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति 37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना 38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि 39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग 40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ 41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना 42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना 43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना 44- चांदी देखना- धन लाभ होना 45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा 46- कैंची देखना- घर में कलह होना 47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति 48- लाठी देखना- यश बढऩा 49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना 50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना 51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत 52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि 53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि 54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा 55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या 56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश 57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति 58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता 59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ 60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति 61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग 62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति 63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना 64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना 65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना 66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना 67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ 68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति 69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना 70- चील देखना- शत्रुओं से हानि 71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना 72- सोना मिलना- धन हानि होना 73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग 74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना 75- धुआं देखना- व्यापार में हानि 76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी 77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट 78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग 79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना 80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना 81- रुई देखना- निरोग होने के योग 82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन 83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा 84- उल्लू देखना- धन हानि होना 85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति 86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना 87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ 88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति 89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना 90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और में वृद्धि 91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना 92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना 93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग 94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ 95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा 96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना 97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना 98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना 99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति 100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना 101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना.......!! पं सुशील मिश्रा !!. जय श्री राम. ..!!

Monday, September 22, 2014

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् || अर्थात् उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।

दुर्गा के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र  १॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।  मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३) अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। २॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु “राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा। आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७) ३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये “सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।  शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०) अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है। ४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये “दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:  स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या  सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७) अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो। ४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु “यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।। संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः। यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।। तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्। वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७) ५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये “विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६) अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो। ६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु “विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या। ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१) ७॰ संतान प्राप्ति हेतु “नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा। ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२) ८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु “ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति। तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५) ९॰ रक्षा पाने के लिये शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।  घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥ अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें। १०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।  गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥ अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है। ११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।  त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥ अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो। १२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।  दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥ अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो। १३॰ बाधा शान्ति के लिये “सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।  एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८) अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। १४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:। धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥ अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। १५॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।  तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो। १६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।  रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। १७॰ महामारी नाश के लिये जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।  दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥ अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। १८॰ रोग नाश के लिये “रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।  त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९) अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं। १९॰ विपत्ति नाश के लिये “शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।  सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२) अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। २०॰ पाप नाश के लिये हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।  सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥ अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है। १७॰ भय नाश के लिये “सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।  भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।  पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥ ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।  त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६) अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है। २१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी  शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:। अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले। २२॰ विश्व की रक्षा के लिये या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:  पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा  तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥ अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये। २३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं  विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्। विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति  विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥ अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं। २४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद  प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं  त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥ अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो। २५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:। पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥ अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो। २६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो  ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय  नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥ अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें। २७॰ सामूहिक कल्याण के लिये देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या  निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या। तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां  भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥ अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।  २८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ २९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ ३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी। त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥ ३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये “सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते। स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८) ३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥ ३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥ ३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु “ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्, ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)

शिवजी बोले – देवी ! सुनो। मैं उत्तम कुंजिकास्तोत्रका उपदेश करुँगा , जिस मन्त्र के प्रभाव से देवीका जप ( पाठ ) सफ़ल होता है || कवच , अर्गला , कीलक ,रहस्य,सूक्त,ध्यान,न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी (आवश्यक ) नहीं हैं || केवल कुंजिकाके पाठसे दुर्गा-पाठका फल प्राप्त हो जाता है । ( यह कुंजिका) अत्यन्त गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है || शिव उवाच  शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥  न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥  कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥  गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।  पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥  मंत्र :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा  नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी॥  नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी॥ जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।  ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥ क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।  चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी॥  धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥  हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥  अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं । धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥  पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥  इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥  यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥  ॐ श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं। हरि ॐ तत्सत

शारदीय नवरात्र , शरद नवरात्री आश्विन शुक्ल पक्ष की पड़वा से लेकर नवमी तक शारदीय नवरात्री मनाया जाता हैं ! भारत में चार नवरात्री मनाते हैं जो कि इस प्रकार हैं ! चैत्र अषाढ़ अश्विन माघ आश्विन नवरात्र का अपना महत्त्व हैं ! अश्विन नवरात्री को शारदीय नवरात्री के नाम से भी जाना जाता हैं ! चैत्र और शरद नवरात्री में सभी देवी माँ की उपासना करते हैं ! नवरात्री में महादुर्गा, महासरस्वती, महालक्ष्मी, महाकाली, आदि देवियों की उपासना व् दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए ! स्वयं ये पाठ न कर सकते हो तो ब्राह्मण द्वारा, गणेश, माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी , कलश , नवग्रह, षोडश मातृका एवं सर्वतो भद्र बेदी आदि का पूजन कराकर पाठ करे ! प्रतिदिन बटुक व् कुमारी का भी पूजन करे ! नवमी को हवन करे ! इन नौ दिनों में अर्थात शरद नवरात्री में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ! हो सके तो नौ दिनों का उपवास करे ! अन्यथा अपनी सामर्थ्यनुसार भोजन कर प्रसाद ग्रहण करे ! कन्या पूजन में कन्याओं की आयु दस वर्ष तक की ही होनी चाहिए ! नवरात्री में श्री मदभागवत की कथा व् रामायण पाठ भी सुखद व् अनुकूलित फल प्रदान करता हैं ! शरद नवरात्री में सरस्वती शयन भी कराया जाता हैं ! पूजन का विधान में सरस्वती जी को मूल नक्षत्र में आहवाहन करें तथा पुस्तक को शयन कराकर पुस्तक का प्रतिदिन पूजन करे ! श्रवण नक्षत्र में विसर्जन करे सप्तमी से दसमी तक पठन पाठन बंद रखे ! नवरात्री में प्रतिदिन सिद्ध कुज्जिका स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा सप्तशती पाठ करने का पूर्ण फल मिलता हैं !

शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, 25 सितंबर 2014 को शारदीय नवरात्रों का प्रारंभ होगा. देवी दुर्गा जी की पूजा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है. नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है. नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं. कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र प्रारंभ | दुर्गा पूजन का आरंभ कलश स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को 25 सितंबर के दिन की जाएगी. आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. कलश की स्थापना के साथ ही माता का पूजन आरंभ हो जाता है और नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व अपने साथ सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला होता है. शक्ति पूजा का यह समय संपूर्ण ब्रह्माण की शक्ति को नमन करने और प्रकृत्ति के निर्विकार रुप से अग्रसर होने का समय होता है. शक्ति उपासना का समय शारदीय नवरात्र | शारदीय नवरात्र शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण समय होता है. देवी के जयकारों से समस्त वातावरण अभिभूत हो जाता है. देवी की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा उपासना की जाती है. कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती एवं दुर्गा मां के मंत्रो उच्चारणों द्वारा माता का आह्वान किया जाता है. शारदीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक इनका रंग दिन प दिन चढ़ता जाता है और नवमी के आते आते पर्व का उत्साह अपने चरम पर होते हैं. दुर्गा अष्टमी तथा नवमी के दिन मां दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्यों को भोजन कराया जाता है. शक्ति पूजा का यह समय, कन्याओं के रुप में शक्ति की पूजा को अभिव्यक्त करता है.आदिशक्ति की इस पूजा का उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है. श्री राम द्वारा किया गया शक्ति पूजन तथा मार्कण्डेय पुराण अनुसार स्वयं मां ने इस समय शक्ति पूजा के महत्व को प्रदर्शित किया है. आश्विन माह की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान देखे जा सकते हैं नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, जीव को सदगति प्रदान करने वाली होती है तथा जीव समस्त बंधनों एवं कठिनाईयों से पार पाने कि शक्ति प्राप्त करने में सफल होता है. शारदीय नवरात्र व्रत | शारदीय नवरात्र व्रत स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं. सर्वप्रथम प्रातः काल स्वयं स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर वर्त संकल्प कर पूजा स्थान पर वेदी का निर्माण कर लेना चाहिए श्री गणेश करते हुए आद्या शक्ति का विधिवत प्रकार से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. कलश की स्थापना कर नवरात्र व्रत का संकल्प लेकर कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत एवं पंचगव्य डालकर उसके मुंह पर कलावा बाधना चाहिए, कलश के पास गेहूं या जौ का पात्र रखकर पूजन कर मा दुर्गा का ध्यान करना चाहिए. देवी महात्म्य और दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ मंत्रोचारण भी करना चाहिए इस प्रकार नौ दिनों तक नवरात्र करके दशमी को दशांश हवन, कन्या पूजन द्वारा व्रत का पारण करना चाहिए.

Thursday, September 18, 2014

क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसारबन्धनम्। धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥ ..... क्रोध समस्त विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है, इसलिए क्रोध को त्याग दें।

केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः न स्नानं न विलोपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः। वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता र्धायते क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ ....... बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी सुन्दर प्रकार से शोभा बढ़ाती है। साधारण आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही सनातन आभूषण है॥

मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः। पङ्कच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः॥ ....... बुद्धिमानों के साथ से मंद व्यक्ति भी बुद्धि प्राप्त कर लेते हैं जैसे रीठे के फल से उपचारित गन्दा पानी भी स्वच्छ हो जाता है॥

कुसुमस्तबकस्येव द्वयीवृत्तिर्मनस्विनः। मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य विशीर्येत वनेऽथवा ।। ...... फूलों की तरह मनस्वियों की दो ही गतियाँ होती हैं; वे या तो समस्त विश्व के सिर पर शोभित होते हैं या वन में अकेले मुरझा जाते हैं॥

महाजनस्य संसर्गः, कस्य नोन्नतिकारकः। पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥ ........ हिंदी अनुवाद महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद भी मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है|

नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तपः । नास्ति राग समं दुःखम् नास्ति त्याग समं सुखम् ॥

​ हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरेावरम् | तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते || ....... ​हिमालय पर्वत से शुरू होकर भारतीय महासागर तक फैला हुआ ​इश्वर निर्मित देश है "हिंदुस्तान " ​, ​यही वह देश है जहाँ इश्वर समय -​ समय पर जन्म लेते हैं और सामाजिक सभ्यता की स्थापना करते हैं ।

नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः | विक्रमार्जितराज्यस्य स्वयमेव मृगेंद्रता || ........ जंगल में पशु शेर का संस्कार करके या उसपर पवित्र जल का छिडकाव करके उसे राजा घोषित नहीं करते बल्कि शेर अपनी क्षमताओं और योग्यता के बल पर खुद ही राजत्व स्वीकार करता है ।

हंस: श्वेतो बक: श्वेतो को भेदो बकहंसयो: | नीरक्षीरविवेके तु हंस: हंसो बको बक: || ....... यूँ तो हंस और बगुला दोनों का रंग श्वेत होता है, लेकिन जब दूध और पानी के मिश्रण में से दूध और पानी को अलग करने की बात आती है तो तब हंस और बगुले में अंतरका पता चलता है ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् || अर्थात् उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।

Monday, September 15, 2014

स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः । स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार | तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर || अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो ll.............!! बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. अर्थ : मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा.!!

नदियोंकी पवित्रताकी रक्षा, धर्मकर्तव्य ही है ! धर्मशास्त्रके अनुसार 'जल श्रीविष्णुका निवासस्थान है, अतः उसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए' । नदी प्रदूषणमुक्त करने हेतु - १. नदीमें प्लास्टिक, कूडा-कचरा इत्यादि न फेंकें ! २. नदीमें कुल्ला करना, मल-मूत्र विसर्जन इत्यादि न करें ! ३. कारखानोंके कारण हो रहे नदी-प्रदूषणका वैधानिक विरोध करें ! हिंदुओ, नदियोंकी पवित्रताकी रक्षा करो । इसके लिए अन्योंको भी प्रेरित करो एवं श्रीविष्णुकी कृपा पाओ !

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है || हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है जहॉं सिंह बन गये खिलौने गाय जहॉं मॉं प्यारी है जहॉं सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है | जहॉं कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी है त्याग और तप की गाथाऍं गाती कवि की वाणी है ज्ञान जहॉं का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है | जिस के सैनिक समरभूमि मे गाया करते गीता है जहॉं खेत मे हल के नीचे खेला करती सीता है जीवन का आदर्श जहॉं पर परमेश्वर का धाम है |

नवरात्रि क्या है ?? और नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य :: नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता,... तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। लेकिन नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते। मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है। जो उपासक इन शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं। आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं, पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं। सामान्य भक्त ही नहीं, पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागना नहीं चाहते। न कोई आलस्य को त्यागना चाहता है। बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं।मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धांत → वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है। इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है। जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है। नवरात्र या नवरात्रि → संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है। नवरात्र क्या है → पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है। नौ दिन या रात → अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं। शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है। नौ देवियाँ / नव देवी → नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की पड़वा यानि पहली तिथि से नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी मतलब नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं : 1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चंद्रघंटा 4. कूष्माण्डा 5. स्कन्दमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिध्दीदात्री इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीजों से भी सम्बंध है, जिन्हे नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है : 1. कुट्टू (शैलान्न) 2. दूध-दही, 3. चौलाई (चंद्रघंटा) 4. पेठा (कूष्माण्डा) 5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता) 6. हरी तरकारी (कात्यायनी) 7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि) 8. साबूदाना (महागौरी) 9. आंवला(सिध्दीदात्री) क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं। अष्टमी या नवमी → यह कुल परम्परा के अनुसार तय किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए। वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता 'दुर्गासप्तशती' में कही गई है। जय माँ भवानी..

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।। (सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)

वर्तमान शिक्षापद्धतिके दुष्परिणाम ! धूर्त ब्रिटिश शिक्षा विशेषज्ञ मेकौलेने ब्रिटिश सत्ता बनाए रखने हेतु अंग्रेजी भाषा जाननेवाले लिपिक (बाबू) सिद्ध (तैयार) करनेवाली शिक्षापद्धति भारतमें लागू की । इसका गुप्त उद्देश्य था, 'हिंदुओंकी आगामी पीढियोंको उनके धर्म और संस्कृतिसे दूर करना ।' स्वतंत्रताप्राप्तिके पश्चात, हमारे भारतीय शासकोंने यही शिक्षापद्धति जारी रखी । आजकल विद्यार्थियोंमें अनैतिकता, 'रैगिंग'की कुप्रथा तथा धर्मनिष्ठाका अभाव आदि दुष्परिणाम मेकौलेकी ही शिक्षापद्धतिके कटु फल हैं । अपने धर्म और संस्कृतिका पोषण करनेवाली शिक्षापद्धति लागू करने हेतु 'हिंदु राष्ट्र' आवश्यक ?

भ्रष्टाचार रोको, भारतको आदर्श राष्ट्र बनाओ ! 'ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी'द्वारा जारी आंकडोंके अनुसार १९४७ से २००८ की कालावधिमें भ्रष्टाचारके ४६२ अरब डॉलर (२५ लाख करोड रुपए) अवैध मार्गसे भारतके बाहर गए हैं । यह आंकडा अनुमानतः राष्ट्रीय उत्पादका ३० प्रतिशत भाग है । १. भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियोंको रंगे हाथ पकडवानेके लिए 'भ्रष्टाचारविरोधी दल'की सहायता करें ! २. जनप्रतिनिधियोंको पत्र भेजकर भ्रष्टाचार और काले धनके विरुद्ध अधिनियम (कानून) बनाने हेतु आग्रह करें ! ३. काला धन भारतमें लानेके लिए योगगुरु प.पू. रामदेवबाबाद्वारा चलाए जा रहे आंदोलनोंमें सहभागी हों ! भारतीयोंका विदेशमें रखा काला धन वापस लाने हेतु चरित्रवान नेताओंका 'हिंदु राष्ट्र' स्थापित करें !

बहनो, पश्चिमी प्रथाएं त्यागो; प्रतिकारक्षम बनो ! देशमें प्रत्येक ३४ मिनटमें १ महिलाके साथ बलात्कार, ४२ मिनटमें १ महिलापर लैंगिक अत्याचार, ४३ मिनटमें १ महिलाका अपहरण और ९३ मिनटमें १ महिलाकी हत्या होती है ! बहनो, इन अत्याचारोंके प्रतिकार हेतु कटिबद्ध हों !! १. अपनी एवं अन्योंकी रक्षा हेतु लाठी, कराटे, नानचाकू जैसी 'स्वरक्षा' विद्याएं सीखें ! २. महिलाओंपर होनेवाले अत्याचारोंके लिए सर्वाधिक उत्तरदायी पाश्चात्य कुप्रथाओंके (उदा. 'रोज डे' प्रथाके, पाश्चात्य वेशभूषाके) अंधानुकरणका विरोध करें ! अश्लील विज्ञापन, चलचित्र, वेशभूषा, दूरदर्शनके धारावाहिक आदिके विरुद्ध वैध मार्गसे जनताका प्रबोधन करें ! आगामी 'हिंदु राष्ट्र'में 'पर-स्त्री मातासमान', यह भाव होगा; इससे पूरे विश्वकी महिलाएं सुरक्षित रहेंगी !

..........मातृ दिवस ........... मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। मातृत्व की छाया मेँ मां न केवल अपने बच्चों को सहेजती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसका सहारा बन जाती है। समाज मेँ मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई। 

जय श्री गणेश  __.-^-._  @(~?~)@  (,)( % )(,) ......... विघ्नहर्ता,मंगलकर्ता आप सब के जीवन में नूतन उत्साह का संचार करे समस्त विपत्तियों से आप सबकी और आपके परिवार की रक्षा करे...हे गणपति बप्पा सारी बुराइयो से दूर रख कर आप हमें अपने चरणों में स्थान दे...!!! !! गणपति बाप्पा मोरया ! !! मंगल मूर्ति मोरया !!

★Gσσδ★* 。 • ˚ ˚ ˛ ˚ ˛ •。★мояиíиб★ 。* 。 ˛ ° 。 ° ˚* _Π_____*。*˚ ˛ ˚ ˛ •˛•*/______/~\。˚ ˚˛ ˚ ˛ •˛• | 田田|門| ˚ ˚ ★ .............................!!!! ★ %%%%%%%%%%%%%%%% .̲̲.̲ •。•。•。•。•。•。•。•。•。 ┊  ┊  ┊  ┊ ┊  ┊  ┊  ★ ┊  ┊  ☆ ┊  ★ ☆ ♥ suprabhat ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥♥ ♥♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ Mangalam Jay shree ram

क्या खुब लिखा है किसी ने ..."बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !! "न मेरा 'एक' होगा, न तेरा 'लाख' होगा, ... ! न 'तारिफ' तेरी होगी, न 'मजाक' मेरा होगा ... !! गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... ! मेरा भी 'खाक' होगा, तेरा भी 'खाक' होगा ... !! जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड' करनेवालों ... ! याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !! कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... ! और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !! क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !' ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के दिखाता है ... !! 'मौत' को देखा तो नहीं, पर शायद 'वो' बहुत"खूबसूरत" होगी, ... ! "कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,"जीना छोड़ देता है" ... !! 'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़मानेमें" ... ! 'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठानेमें" ... !! 'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री"होगी, ... ! ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी । मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !!

Friday, September 12, 2014

ख्वाहिश तो कर्जा लेकर भी पूरी हो जाती हैं फिर पूरी जिंदगी किश्तों में खो जाती है। ———- जिन्होंने महलों में रहकर गुजारी जिंदगी क्या वह समझेंगे वीरों के जंग की कहानी। ———– शरीक के जख्म तो जाते हैं कभी न कभी दिल का दर्द ऐसा लगता जैसे चोट हुई हो अभी अभी। ————– पूरी जिंदगी का बखान क्या करें यहां तो पल ही में माहौल बदल जाता हैll

संत कबीर वाणी-ज्ञानी और कवि बहुत, पर भक्त कम हैं..ll ज्ञानी ज्ञाता बहु मिले, पण्डित कवी अनेक। राम रता इंन्द्री जिता, कोटी मध्ये एक ll संत कबीरदास जी कहते हैं कि ज्ञान, ज्ञाता, विद्वान और कवि तो बहुत सारे मिले पर भगवान श्रीराम के भजन में रत तथा इंद्रियां जीतने वाला तो कोई करोड़ो में कोई एक होता है।  पढ़ते-पढ़ते जनम गया, आसा लागी हेत। बोया बीजहि कुमति ने, गया जू निर्मल खेत।।  संत कबीरदास जी कहते हैं कि पढ़ते और गुनते पूरा जन्म गुजर गया पर मन की कामनायें और इच्छायें पीछा करती रही। कुमति का बीज जो दिमाग के खेत में बोया उससे मनुष्य के मन का निर्मल खेत नष्ट हो गया। वर्तमान संदर्भ में संपाकदीय व्याख्या-आधुनिक शिक्षा ने सांसरिक विषयों में जितना ज्ञान मनुष्य को लगा दिया उतना ही वह अध्यात्मिक ज्ञान से परे हो गया है। वैसे यह तो पुराने समय से चल रहा है पर आज जिस तरह देश में हिंसा और भ्रष्टाचार का बोलबाला है उससे देखकर कोई भी नहीं कह सकता है कि यह देश वही है जैसे विश्व में अध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। आतंकवाद केवल विदेश से ही नहीं आ रहा बल्कि उसके लिये खादी पानी देने वाले इसी देश में है। इसी देश के अनेक लोग विदेश की कल्पित विचाराधारा के आधार पर देश में सुखमय समाज बनाने के लिये हिंसक संघर्ष में रत हैं। यह लोग पढ़े लिखे हैं पर अपने देश में वर्ग संघर्ष में समाज का कल्याण देखते हैं। अपने ही अध्यात्मिक शिक्षा को वह निंदनीय और अव्यवहारिक मानते हैं।  जहां हिंसा होगी वहां प्रतिहिंसा भी होगी। जहां आतंक होगा वहां राज्य को भी आक्रमक होकर कार्यवाही करनी पड़ती है। हिंसा से न तो राज्य चलते हैं न समाज सुधरते हैं। इतना ही नहीं इन हिंसक तत्वों ने साहित्य भी ऐसा ही रचा है और उनके लेखक-कवि भी ऐसे हैं जो हिंसा को प्रोत्साहन देते हैं।  सच बात तो यह है कि समाज पर नियंत्रण तभी रह सकता है जब व्यक्ति पर निंयत्रण हो। व्यक्ति पर निंयत्रण राज्य करे इससे अच्छा है कि व्यक्ति आत्मनियंत्रित होकर ही राज्य संचालन में सहायता करे। व्यक्ति को आत्मनिंयत्रण करने की कला भारतीय अध्यात्म ही सिखा सकता है। इसी कारण जिन लोगों के मन में तनाव और परेशानियां हैं वह भारतीय धर्मग्रंथों खासतौर से श्रीगीता का अध्ययन अवश्य करें तभी इस जीवन रहस्य को समझ पायेंगे।  ……………………………

मैले विचार वाला तन धोने से पवित्र नहीं होता ll !! !! !! ‘‘मनि मैले सभ किछु मैला तनि धोतै मनु हछा न होइ।‘ जिस मनुष्य के मन में कुविचार और मैल है वह पूरी तरह से स्वयं ही मैला है। चाहे कितना भी वह तन धो ले पर उसका पवित्र नहीं होगा। ‘‘जाकै बिनसिउ मन ते भरमा। ताकै कछु नाहीं डर जमा।।’’ जिस मनुष्य के मन में कोई भ्रम नहीं रहता उसे मौत का भी डर नहीं रहता।  ‘मनि जीतै जगु जीतु।‘ जिसने मन जीत लिया उसे सारा जग ही जीत लिया।  वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-हमारे अध्यात्म दर्शन में मनुष्य को मन का पंछी बताया जाता है। सच तो यह है कि मनुष्य एक आत्मा है पर देह में स्थित मन उसकी बुद्धि को अपने होने का आभास देता है। इस त्रिगुणमयी माया में मनुष्य का मन उसे इस तरह फंसाये रहता है कि उसकी बुद्धि को वही सच लगता है।  देह का अस्तित्व आत्मा से है पर मन उसे पशु की तरह हांकता चला जाता है और मनुष्य बुद्धि में यह अहसास तक नहीं होता। मन कभी साफ नहीं होता जब तक अध्यात्मिक ज्ञान या भक्ति से आदमी अपनी बुद्धि, मन और अहंकार पर नियंत्रण कर ले। लालच,लोभ,क्रोध और मोह के जाल में फंसा मनुष्य अपना अस्तित्व उस मन से ही अनुभव करता है जो कि उसकी देह का हिस्सा है। अगर कोई मनुष्य ईश्वर की भक्ति दृढ़ भाव से करे तो उसकी बुद्धि स्थिर हो जायेगी और फिर मन काबू में आयेगा। काबू में आने पर ही उसमें शुद्धता लायी जा सकती है वरना तो वह मनुष्य देह में मौजूद अहंकार को बढ़ाकर उसके बंधन में मनुष्य का बांध देता है और फिर पशु की तरह हांकता चला जाता है-मनुष्य को यही भ्रम रहता है कि मैं चल रहा हूं। इस प्रकार के भ्रम पर भक्ति और ज्ञान से विजय पायी जा सकती है अन्यथा नहीं।

सम्‍बन्‍धसूचकशब्‍दा: ।। >>> औरत --------- स्‍त्री, योषित्, नारी >>> गाभिन --------- गर्भिणी >>> चचेरा भाई --------- पितृव्‍यपुत्र: >>> चाचा --------- पितृव्‍य: >>> चाची --------- पितृव्‍यपत्‍नी >>> छोटा भाई --------- अनुज:, कनिष्‍ठसहोदर: >>> जमाई (दामाद) --------- जामातृ >>> जीजा (बहनोई) --------- आवुत्‍त:, भगिनीपति: >>> दादा --------- पितामह: >>> दादी --------- पितामही >>> दुश्‍मन --------- अरि:, रिपु:, शत्रु: >>> दूती --------- संचारिका, दूती >>> देवर --------- देवर: >>> देवरानी --------- यातृ (याता) >>> ननद --------- ननान्‍दृ (ननान्‍दा) >>> नाती --------- नप्‍तृ (नप्‍ता) >>> नाना --------- मातामह: >>> नानी --------- मातामही >>> नौकर --------- भृत्‍य:, प्रैष्‍य:, अनुचर: >>> नौकरानी ---------- परिचारिका >>> पति --------- पति: >>> पतिव्रता --------- साध्‍वी >>> पतोतरा (तरी) --------- प्रपौत्र:, प्रपौत्री >>> परदादा --------- प्रपितामह: >>> परदादी --------- प्रपितामही >>> परनाना --------- प्रमातामह: >>> परनानी --------- प्रमातामही >>> पिता --------- जनक: , पितृ (पिता) >>> पुत्र --------- पुत्र:, आत्‍मज: >>> पुत्री --------- पुत्री, आत्‍मजा >>> पोता --------- पौत्र: >>> पोती --------- पौत्री >>> फूआ --------- पितृष्‍वसृ (पितृष्‍वसा) >>> फूफा --------- पितृष्‍वसृपति: >>> फुफेरा भाई --------- पैतृष्‍वस्रीय: >>> बडा भाई --------- अग्रज: >>> बहिन --------- भगिनी, स्‍वसृ (स्‍वसा) >>> भतीजा --------- भ्रात्रीय:, भ्रातृपुत्र: >>> भतीजी --------- भ्रातृसुता >>> भानजा --------- स्‍वस्रीय:, भागिनेय: >>> भाभी (भौजाई) --------- भ्रातृजाया, प्रजावती >>> माता --------- मातृ (माता), जननी >>> मामा, मामी --------- मातुल:, मातुली >>> मालिक --------- स्‍वामी, प्रभु: >>> मित्र --------- वयस्‍य:, मित्रम्, सुहृद् >>> मौसा --------- मातृष्‍वसृपति: >>> मौसी --------- मातृष्‍वसृ (मातृष्‍वसा) >>> मौसेरा भाई --------- मातृष्‍वस्रीय: >>> यार --------- जार:, उपपति: >>> रंडा --------- विधवा, विश्‍वस्‍ता, रण्‍डा >>> रिश्‍तेदार (सम्‍बन्‍धी) --------- ज्ञाति:, बन्‍धु: >>> वृद्धपरनाना --------- वृद्धप्रपितामह: >>> वेश्‍या --------- गणिका, वारस्त्री, वेश्‍या >>> सखी --------- आलि:, वयस्‍या >>> सगा भाई --------- सहोदर: >>> समधिन --------- सम्‍बन्धिनी >>> समधी --------- सम्‍बन्धिन् >>> ससुर ---------- श्‍वशुर: >>> साला --------- श्‍याल: >>> सास--------- श्‍वश्रू: >>> सोहागिन --------- पुरन्ध्रि:, सौभाग्यवतीमामा, मामी --------- मातुल:, मातुली >>> मालिक --------- स्‍वामी, प्रभु: >>> मित्र --------- वयस्‍य:, मित्रम्, सुहृद् >>> मौसा --------- मातृष्‍वसृपति: >>> मौसी --------- मातृष्‍वसृ (मातृष्‍वसा) >>> मौसेरा भाई --------- मातृष्‍वस्रीय: >>> यार --------- जार:, उपपति: >>> रंडा --------- विधवा, विश्‍वस्‍ता, रण्‍डा >>> रिश्‍तेदार (सम्‍बन्‍धी) --------- ज्ञाति:, बन्‍धु: >>> वृद्धपरनाना --------- वृद्धप्रपितामह: >>> वेश्‍या --------- गणिका, वारस्त्री, वेश्‍या >>> सखी --------- आलि:, वयस्‍या >>> सगा भाई --------- सहोदर: >>> समधिन --------- सम्‍बन्धिनी >>> समधी --------- सम्‍बन्धिन् >>> ससुर ---------- श्‍वशुर: >>> साला --------- श्‍याल: >>> सास--------- श्‍वश्रू: >>> सोहागिन --------- पुरन्ध्रि:, सौभाग्यवती

ओ३म्  संस्कृत वाक्य अभ्यासः  ~~~~~~~~~`~~~~  हे प्रभो ! वयं तव भक्ताः = हे प्रभु , हम तुम्हारे भक्त  त्वां विना वयम् अशक्ता: = तुम्हारे बिना हम हैं अशक्त  वाञ्छामः तव अनुकम्पाम् = चाहते तुम्हारी अनुकम्पा  कुरु कुरु अस्माकं रक्षाम् = करो हमारी तुम रक्षा  वयं तु स्मः विकारपूर्णाः = हम तो सभी विकारपूर्ण हैं  त्वां विना सर्वे अपूर्णाः = तुम्हारे बिना हम अपूर्ण हैं  नाशय अस्माकं दोषान् = नाश करो सब दोष हमारे  उद्धारय आस्मान् दीनान् = हम दीनों का उद्धार करो  अहर्निशं वयं ध्यायामः = दिन औ रात हम करते ध्यान  जीवनशक्तिं विन्दामः = जीवन की शक्ति पाते हैं