शीत ने अपने पांव पसारे
छुए वर्ष ने फिर से किनारे
वर्ष 2011 की समापन घड़ियों में
मेरी ओर से आप सब को
वर्ष 2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं !
Friday, December 30, 2011
**noontan varshabhinandan**
नए वर्ष में नई पहल हो।
कठिन ज़िंदगी और सरल हो।।
अनसुलझी जो रही पहेली।
अब शायद उसका भी हल हो।।
जो चलता है वक्त देखकर।
आगे जाकर वही सफल हो।।
नए वर्ष का उगता सूरज।
सबके लिए सुनहरा पल हो।।
समय हमारा साथ सदा दे।
कुछ ऐसी आगे हलचल हो।।
सुख के चौक पुरें हर द्वारे।
सुखमय आँगन का हर पल हो।।
कठिन ज़िंदगी और सरल हो।।
अनसुलझी जो रही पहेली।
अब शायद उसका भी हल हो।।
जो चलता है वक्त देखकर।
आगे जाकर वही सफल हो।।
नए वर्ष का उगता सूरज।
सबके लिए सुनहरा पल हो।।
समय हमारा साथ सदा दे।
कुछ ऐसी आगे हलचल हो।।
सुख के चौक पुरें हर द्वारे।
सुखमय आँगन का हर पल हो।।
Thursday, December 29, 2011
मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है। sw.vi.
Saturday, December 24, 2011
Thursday, December 15, 2011
Monday, December 12, 2011
Friday, December 9, 2011
Thursday, December 8, 2011
Param Pujya Sudhanshu Ji Maharaj: Fwd: आज का विचार - 8/5/11
Param Pujya Sudhanshu Ji Maharaj: Fwd: आज का विचार - 8/5/11: FOR MORE POSTINGS VISIT BLOGS कुछ उदबोधन और जागृति के अक्षर अपने सामने रखकर जीवन जीओ जिससे आप सामान्य से ऊपर उठ सकें । आपके विचार ब...
Tuesday, December 6, 2011
Sunday, December 4, 2011
Thursday, December 1, 2011
Monday, November 28, 2011
किसी भी कार्य में सफलता इस बात पर निर्भर होती है कि आपका प्रयास कैसा है? लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आप किस प्रकार कार्य कर रहे हैं? जीवन में हर कदम कामयाबी चाहिए तो आचार्य चाणक्य की ये नीति अपनाना चाहिए।
आचार्य कहते हैं-
प्रभूतं कायमपि वा तन्नर: कर्तुमिच्छति।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते।।
यदि किसी व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करना है तो उसे चाहिए वह पूरी शक्ति लगाकर कार्य करें। ठीक उसी तरह जैसे कोई शेर अपना शिकार करता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं हमें जो भी कार्य करना है वह पूरी ताकत से करना चाहिए। कार्य चाहे जितना छोटा या बड़ा हो हमें पूरी शक्ति लगाकर ही करना चाहिए। तभी हमारी कामयाबी पक्की हो जाती है। जिस प्रकार कोई शेर अपने शिकार पर पूरी शक्ति से झपटता है और शिकार को भागने का मौका नहीं देता, इसी गुण के कारण वह कभी असफल नहीं होता है। हमें सिंह की भांति ही अपने लक्ष्य की ओर झपटना चाहिए, आगे बढऩा चाहिए। कार्य में किसी प्रकार का ढीलापन हुआ तो कामयाबी आपसे दूर हो जाएगी। यही सफलता प्राप्त करने का अचूक उपाय है।
आचार्य कहते हैं-
प्रभूतं कायमपि वा तन्नर: कर्तुमिच्छति।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते।।
यदि किसी व्यक्ति को अपना लक्ष्य प्राप्त करना है तो उसे चाहिए वह पूरी शक्ति लगाकर कार्य करें। ठीक उसी तरह जैसे कोई शेर अपना शिकार करता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं हमें जो भी कार्य करना है वह पूरी ताकत से करना चाहिए। कार्य चाहे जितना छोटा या बड़ा हो हमें पूरी शक्ति लगाकर ही करना चाहिए। तभी हमारी कामयाबी पक्की हो जाती है। जिस प्रकार कोई शेर अपने शिकार पर पूरी शक्ति से झपटता है और शिकार को भागने का मौका नहीं देता, इसी गुण के कारण वह कभी असफल नहीं होता है। हमें सिंह की भांति ही अपने लक्ष्य की ओर झपटना चाहिए, आगे बढऩा चाहिए। कार्य में किसी प्रकार का ढीलापन हुआ तो कामयाबी आपसे दूर हो जाएगी। यही सफलता प्राप्त करने का अचूक उपाय है।
Friday, November 25, 2011
हार किसकी है और किसकी फतह कुछ सोचिए ।
जंग है ज्यादा जरूरी या सुलह कुछ सोचिए।
यूं बहुत लम्बी उडा़नें भर रहा है आदमी,
पर कहीं गुम हो गई उसकी सतह कुछ सोचिए।
मौन है इन्सानियत के कत्ल पर इन्साफ-घर,
अब कहां होगी भला उस पर जिरह कुछ सोचिए।
अब कहां ढूंढें भला अवशेष हम ईमान के,
खो गई सम्भावना वाली जगह कुछ सोचिए।
दे न पाए रोटियां बारूद पर खर्चा करे,
या खुदा अब बन्द हो ऐसी कलह कुछ सोचिए।
आदमी ’इन्सान’ बनकर रह नहीं पाया यहां,
क्या तलाशी जाएगी इसकी वजह कुछ सोचिए।
जंग है ज्यादा जरूरी या सुलह कुछ सोचिए।
यूं बहुत लम्बी उडा़नें भर रहा है आदमी,
पर कहीं गुम हो गई उसकी सतह कुछ सोचिए।
मौन है इन्सानियत के कत्ल पर इन्साफ-घर,
अब कहां होगी भला उस पर जिरह कुछ सोचिए।
अब कहां ढूंढें भला अवशेष हम ईमान के,
खो गई सम्भावना वाली जगह कुछ सोचिए।
दे न पाए रोटियां बारूद पर खर्चा करे,
या खुदा अब बन्द हो ऐसी कलह कुछ सोचिए।
आदमी ’इन्सान’ बनकर रह नहीं पाया यहां,
क्या तलाशी जाएगी इसकी वजह कुछ सोचिए।
पेड़ की छाँव में, बैठे-बैठे सो गए
तुमने मुसकुरा कर देखा, हम तेरे हो गए
तमन्ना जागी दिल में, तुम्हें पाने की
तुम्हें पा लिया, और खुद तेरे हो गए
कब तलक यों ही, दूर रहना पड़ेगा
इस सोच में डूबे-डूबे, दुबले हो गए
बिन पत्तों की, उस डाली को देखा
तसव्वुर किया तुम्हारा, और कवि हो गए
यों ही बैठे रहे, सोचते रहे, हर पल
ख़यालों में तुम आते रहे, हमनशीं हो गए
राज़दार मेरे बनकर, ज़िंदगी में आ गए
रहनुमा बन गए, खुद राज़ हो गए
कोई फूल देखूँ, तो लगता है तुम हो
फिर फूल का क्या करूँ, खुद फूल हो गए
नसीब की कमी है, गुलाब सहता नहीं
पर तुम्हीं ख़यालों में, इक हँसी गुलाब हो गए
बेकरारी बढ़ती है, जब तुम याद आते हो
याद मैं करता नहीं, फिर भी याद आ गए
तुम्हारे लिए है, ये ज़िंदगी मेरी
ख़्वाहिश में तुम्हारी, हम लाचार हो गए
तड़प-तड़प के, एक-एक पल, मुश्किल से बीतते हैं
एक पल बीता, ऐसा लगे, कई साल हो गए
तुमने मुसकुरा कर देखा, हम तेरे हो गए
तमन्ना जागी दिल में, तुम्हें पाने की
तुम्हें पा लिया, और खुद तेरे हो गए
कब तलक यों ही, दूर रहना पड़ेगा
इस सोच में डूबे-डूबे, दुबले हो गए
बिन पत्तों की, उस डाली को देखा
तसव्वुर किया तुम्हारा, और कवि हो गए
यों ही बैठे रहे, सोचते रहे, हर पल
ख़यालों में तुम आते रहे, हमनशीं हो गए
राज़दार मेरे बनकर, ज़िंदगी में आ गए
रहनुमा बन गए, खुद राज़ हो गए
कोई फूल देखूँ, तो लगता है तुम हो
फिर फूल का क्या करूँ, खुद फूल हो गए
नसीब की कमी है, गुलाब सहता नहीं
पर तुम्हीं ख़यालों में, इक हँसी गुलाब हो गए
बेकरारी बढ़ती है, जब तुम याद आते हो
याद मैं करता नहीं, फिर भी याद आ गए
तुम्हारे लिए है, ये ज़िंदगी मेरी
ख़्वाहिश में तुम्हारी, हम लाचार हो गए
तड़प-तड़प के, एक-एक पल, मुश्किल से बीतते हैं
एक पल बीता, ऐसा लगे, कई साल हो गए
हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे
दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे
बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला
हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे
हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे
चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे
हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है
आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे
हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे
दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे
बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला
हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे
हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे
चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे
हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है
आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे
हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे
चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी
पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी
जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी
वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी
जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी
जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी
पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी
जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी
वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी
जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी
जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी
दो क्षणद के इस जीवन में, क्या 'खोना' क्या 'पाना' है,
माटी से तू बना है मानव, फिर इसी में मिल जाना है!
धन-दौलत के मोह में आकर, मानवता को भूलजाना है,
शाम सवेरे दृष्टि में अब तो, यही किस्सा पुराना है!
लालस की नैया को जान ले, एक दिन डूब ही जाना है,
मानवता का जो करे है आदर, वही मनुष्य सयाना है!
वास्तु-मोह में फसे मनष्य को ये, फिर से याद दिलाना है,
जीवन की ये परीक्षा पूर्ण कर, इश्वर के घर जाना है!
धन दौलत सब वास्तु हैं इनको, यहीं छोढ़ कर जाना है,
बस कर्मों के ही चिंता कर तू, के इन्ही को साथ ले-जाना है!
माटी से तू बना है मानव, फिर इसी में मिल जाना है!
धन-दौलत के मोह में आकर, मानवता को भूलजाना है,
शाम सवेरे दृष्टि में अब तो, यही किस्सा पुराना है!
लालस की नैया को जान ले, एक दिन डूब ही जाना है,
मानवता का जो करे है आदर, वही मनुष्य सयाना है!
वास्तु-मोह में फसे मनष्य को ये, फिर से याद दिलाना है,
जीवन की ये परीक्षा पूर्ण कर, इश्वर के घर जाना है!
धन दौलत सब वास्तु हैं इनको, यहीं छोढ़ कर जाना है,
बस कर्मों के ही चिंता कर तू, के इन्ही को साथ ले-जाना है!
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?
भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं !
खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं !
दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं !
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं !
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?
भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं !
खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं !
दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं !
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं !
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
- मैथिलीशरण गुप्त
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, जिन्होंने बच्चों को *अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।
Thursday, November 24, 2011
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Live life with a joyful heart and keep your spirit young and free! Stay true and firm to Jesus Christ! And be the best that you can be! Take care!....
have
A
beautiful
day to
all my sweet
*
friends*
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all my sweet
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Hum agar aapse mil nahi pate aisa nahin ke hamein
aap yaad nahi aate,
mana jahan ke sab rishte nibhaye nahi jate,
par jo bas jate hai dil me phir bhulae nahi jate
aap yaad nahi aate,
mana jahan ke sab rishte nibhaye nahi jate,
par jo bas jate hai dil me phir bhulae nahi jate
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.Kisi na kisi pe kisi ko aetbar ho jata hai,
ajnabi koi shaks yaar ho jata hai,
khubiyo se nahi hoti mohabbat bhi sadaa,
khamiyo se bhi aksar pyaar ho jata hai
ajnabi koi shaks yaar ho jata hai,
khubiyo se nahi hoti mohabbat bhi sadaa,
khamiyo se bhi aksar pyaar ho jata hai
Wednesday, November 23, 2011
सबसे प्यारी, सबसे न्यारी,
कितनी भोली भाली माँ.
तपती दोपहरी में जैसे,
शीतल छैया वाली माँ.
मुझको देख -देख मुस्काती,
मेरे आँसु सह न पाती.
मेरे सुख के बदले अपने,
सुख की बलि चढ़ाती माँ.
इसकी 'ममता' की पावन,
मीठी बोली है मन भावन,
कांटो की बगिया में सुन्दर,
फूलों को बिखराती माँ.
इसका आँचल निर्मल उज्जवल,
जिसमे हैं, नभ - जल -थल.
अपने शुभ आशिषों से,
हम को सहलाती माँ.
माँ का मन न कभी दुखाना,
हरदम इसको शीश झुकाना,
इस धरती पर माता बनकर,
ईश कृपा बरसाती माँ.
प्रेमभाव से मिलकर रहना,
आदर सभी बड़ो का करना,
सेवा, सिमरन, सत्संग वाली,
सच्ची राह दिखाती माँ.
सबसे भोली सबसे प्यारी,
सबसे न्यारी मेरी माँ.
कितनी भोली भाली माँ.
तपती दोपहरी में जैसे,
शीतल छैया वाली माँ.
मुझको देख -देख मुस्काती,
मेरे आँसु सह न पाती.
मेरे सुख के बदले अपने,
सुख की बलि चढ़ाती माँ.
इसकी 'ममता' की पावन,
मीठी बोली है मन भावन,
कांटो की बगिया में सुन्दर,
फूलों को बिखराती माँ.
इसका आँचल निर्मल उज्जवल,
जिसमे हैं, नभ - जल -थल.
अपने शुभ आशिषों से,
हम को सहलाती माँ.
माँ का मन न कभी दुखाना,
हरदम इसको शीश झुकाना,
इस धरती पर माता बनकर,
ईश कृपा बरसाती माँ.
प्रेमभाव से मिलकर रहना,
आदर सभी बड़ो का करना,
सेवा, सिमरन, सत्संग वाली,
सच्ची राह दिखाती माँ.
सबसे भोली सबसे प्यारी,
सबसे न्यारी मेरी माँ.
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