Tuesday, January 10, 2017

!! आदि कवि भगवान वाल्मीकि !!

!! *आदि कवि भगवान वाल्मीकि*!!
एकदा वने एकेन किरातेन क्रौञ्चमिथुनादेकः नरक्रौञ्चः हन्यते । तदनन्तरं क्रौञ्च्याः विलापं आर्तनादं च दृष्ट्वा क्रोधेन पीड़या वा कुपितः वाल्मीकिः तस्मै किराताय शापं ददाति"!!

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥'

एक बार वन में एक बहेलिये ने मैथुनरत क्रौंच पक्षी के जोड़े में से नर को मार दिया और मादा के आर्तनाद विलाप को देखकर बाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ" उसी समय उनके मुख से संस्कृत के ये शब्द श्लोक के रूप में निकले और बहेलिये को श्राप साबित हुए"!
और यही शब्द ब्रह्मा जी के कानों में पड़े उसी समय ब्रह्मा जी वहाँ प्रगट हो कर उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा दी थी"!!
((निषाद)अरे बहेलिये,! (यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्) तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है ! जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं (मा प्रतिष्ठा त्वगमः) हो पायेगी)
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणस्य प्रतिष्ठा वेदतुल्येव अस्ति ।
रामायणे इक्ष्वाकुवंशप्रभवस्य मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामस्य चरितं वर्णितम् अस्ति । महाकाव्येऽस्मिन् २४,००० श्लोकाः सन्ति"!
महाकाव्येऽस्मिन् कथा सप्तकाण्डेषु विभक्ता अस्ति"!
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एतदाख्यानमायुष्यं  पठन् रामायणं नरः।
सपुत्रपौत्रस्सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते ॥
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च संमितम् | यः पठेद्रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते || 
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वैसे तो रामायण लिखने के पूर्व बाल्मीकि जी दस्यु कार्य करते थे, ऐसा माना जाता है, किन्तु" वाल्मीकि जी ने रामायण मे स्वयं कहा है कि :

प्रेचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनंदन। मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किल्विषम्।।

हे राम मै प्रचेता मुनि का दसवा पुत्र हूँ और राम मैंने अपने जीवन में कभी भी पापाचार कार्य नहीं किया है।
ॐ वाल्मीकायै नमः!!
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥��������������
*सर्वेषां मंगलम् भवतु*"
*सुशील मिश्रः*"