(.Vidhya vinayen shobhate.)
Monday, September 29, 2014
कुसुमस्तबकस्येव द्वयीवृत्तिर्मनस्विनः। मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य विशीर्येत वनेऽथवा ।। ...... फूलों की तरह मनस्वियों की दो ही गतियाँ होती हैं; वे या तो समस्त विश्व के सिर पर शोभित होते हैं या वन में अकेले मुरझा जाते हैं॥
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment