Thursday, August 28, 2014

Subhashitani. ................!! यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् | एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति || अर्थात् : जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |

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