Thursday, August 28, 2014

Subhashitani. ...............! सुखस्य दु:खस्य कोऽपि न दाता परो ददाति इति कुबुद्धिरेषा । अहं करोमीति वृथाभिमान: स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोक:।। सुख या दुःख देनेवाला कोई भी नहीं होता। दूसरा कोई हमें यह देता है, यह विचार गलत है। "मैं करता हूँ", यह अभिमान गलत है। सभी अपने-अपने पूर्वजन्म के कर्मों से बन्धे हुए होते हैं।

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