Subhashitani. .....................! सुहृदि निरन्तरचित्ते गुणवति भृत्ये प्रियासु नारीषु |
स्वामिनि शक्तिसमेते निवेद्य दुःखं जनः सुखी भवति ||
अर्थ - एक स्थिर चित्त और सहृदय मित्र से , अपने गुणवान सेवक से , अपनी प्रिय पत्नी तथा अपनी शक्तिसंपन्न स्वामिनी (मालिकिन) से अपने दुःखों को आदर पूर्वक व्यक्त करने से (उनसे मुक्त होने की राह उपलब्ध हो जाती है ) और वह् व्यक्ति अन्ततः सुखी हो जाता है |
(गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि - 'धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपातकाल परखिये चारी' )
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