Thursday, August 28, 2014
पञ्चभिः सह गन्तव्यं स्थातव्यं पञ्चभिः सह | पञ्चभिः सह वक्तव्यं न दुःखं पञ्चभिः सह || अर्थ - यदि कहीं (शुभ कार्य के लिये ) जाना हो तो पांच व्यक्तिओं को एक साथ जाना चाहिये और पांच ही व्यक्तियों के निकट संपर्क में रहना चाहिये | पांच ही व्यक्तियों के साथ अन्तरंग वार्ता करनी चाहिये | इस प्रकार पांचों के साथ रहने से कभी दुःख नहीं होता है.| (सनातन धर्म में पांच की संख्या का बडा ही प्रतीकात्मक महत्व है | उदाहरणार्थ पांच तत्वो अग्नि,पृथ्वी ,वायु, जल और आकाश से मानव शरीर का निर्माण माना गया है , पांच प्रमुख देवता ,पांच ज्ञानेन्द्रियां (त्वचा,आंख, नाक, कान और जीभ ) , पांच कर्मेन्द्रियां (हाथ, पांव, गुप्तांग, कंठ और मल द्वार), पञ्चामृत देवताओं को अर्पित करने के लिये, समय सिद्धान्त के पांच अंग तिथि, वार, करण, नक्षत्र और योग को प्रदर्शित करने वाला पंचांग (भारतीय कैलेण्डर ) ,आयुर्वेद के अन्तर्गत पांच चिकित्सा पद्धतियां जिसे पंचकर्म कहते है,सिक्ख धर्म में पंच प्यारे , आदि | अतः इस सुभाषित में इसी महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है
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pt.sushil mishra
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