हार किसकी है और किसकी फतह कुछ सोचिए ।
जंग है ज्यादा जरूरी या सुलह कुछ सोचिए।
यूं बहुत लम्बी उडा़नें भर रहा है आदमी,
पर कहीं गुम हो गई उसकी सतह कुछ सोचिए।
मौन है इन्सानियत के कत्ल पर इन्साफ-घर,
अब कहां होगी भला उस पर जिरह कुछ सोचिए।
अब कहां ढूंढें भला अवशेष हम ईमान के,
खो गई सम्भावना वाली जगह कुछ सोचिए।
दे न पाए रोटियां बारूद पर खर्चा करे,
या खुदा अब बन्द हो ऐसी कलह कुछ सोचिए।
आदमी ’इन्सान’ बनकर रह नहीं पाया यहां,
क्या तलाशी जाएगी इसकी वजह कुछ सोचिए।
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