दो क्षणद के इस जीवन में, क्या 'खोना' क्या 'पाना' है,
माटी से तू बना है मानव, फिर इसी में मिल जाना है!
धन-दौलत के मोह में आकर, मानवता को भूलजाना है,
शाम सवेरे दृष्टि में अब तो, यही किस्सा पुराना है!
लालस की नैया को जान ले, एक दिन डूब ही जाना है,
मानवता का जो करे है आदर, वही मनुष्य सयाना है!
वास्तु-मोह में फसे मनष्य को ये, फिर से याद दिलाना है,
जीवन की ये परीक्षा पूर्ण कर, इश्वर के घर जाना है!
धन दौलत सब वास्तु हैं इनको, यहीं छोढ़ कर जाना है,
बस कर्मों के ही चिंता कर तू, के इन्ही को साथ ले-जाना है!
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