*🌿जीवन-सूत्राणि🌿*
(१.)
“किंस्वद् गुरूत्तरं भूमेः किंस्विदुच्चतर च खात् ।
किंस्वित् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ।।”
अर्थः–भूमि से भारी क्या है ? आकाश से ऊँचा क्या है ? वायु से तेज क्या है ? घास से भारी क्या है ?
उत्तरः—
“माता गुरूत्तरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ।।”
अर्थः–माता भूमि से भारी है । पिता आकाश से ऊँचा है । मन वायु से तेज है । चिन्ता घास से भारी है ।
(२.)
“किंस्वित् प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्वित् मित्रं मरिष्यतः ।।”
अर्थः–प्रवास में रहते हुए मित्र कौन है ? घर में रहते हुए मित्र कौन है ? रोगी का मित्र कौन है ? मरे हुए का मित्र कौन है ?
उत्तरः—
“सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ।।”
अर्थः—व्यापारी प्रवास में रहते हुए मित्र है । घर में पत्नी मित्र है । रोगी का मित्र औषधि है । मरने वाले का मित्र उसके द्वारा दिया गया दान है ।
(३.)
“किंस्विदेकपदं धर्म्यं किंस्विदेकपदं यशः ।
किंस्विदेकपदं स्वर्ग्यं किंस्विदेकपदं सुखम् ।।”
अर्थः—धर्म करने के योग्य एकपद क्या है ? एकमात्र यश क्या है ? स्वर्ग में जाने का एकमात्र मार्ग कौन सा है ? सुख प्राप्त करने का एकमात्र उपाय क्या है ?
उत्तरः–
“दाक्ष्यमेकपदं धर्म्यं दानमेकपदं यशः ।
सत्यमेकपदं स्वर्ग्यं शीलमेकपदं सुखम् ।।”
अर्थः—धर्म करने का एकमात्र उपाय दक्षता (कुशलता) है । योग्य पात्र को दान करने से यश बढता है । स्वर्ग जाने का एकमात्र मार्ग सत्य है । सुख प्राप्त करने का एकमात्र उपाय शील (चरित्र) है ।
(४.)
“धान्यानामुत्तमं किंस्वद् धनानां स्यात् किमुत्तमम् ।
लाभानामुत्तमं किं स्यात् सुखानां स्यात् किमुत्तमम् ।।”
अर्थः—धान्यों (अन्न, फसल) में उत्तम धान्य क्या है ? धनों में उत्तम धन क्या है ? लाभों में उत्तम लाभ क्या है ? सुखों में उत्तम सुख क्या है ?
उत्तरः—
“धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् ।
लाभानां श्रेय आरोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा ।।”
अर्थः—धान्यों में उत्तम धान्य दक्षता (चतुरता) है । धनों में उत्तम धन वेदों का श्रवण है । लाभों में श्रेष्ठ लाभ आरोग्य (स्वस्थता) है । सुखों में उत्तम सुख संतुष्टि है ।
(५.)
“किं नु हित्वा प्रियो भवति ? किन्नु हित्वा न शोचति ?
किं नु हित्वार्थवान् भवति ? किन्नु हित्वा सुखी भवेत् ?”
अर्थः–किसको छोडकर व्यक्ति प्रिय होता है ? क्या छोडकर चिन्ता नहीं होती है ? क्या छोडकर व्यक्ति अर्थवान् (धनी) हो जाता है ? क्या छोडकर व्यक्ति सुखी होता है ?
उत्तरः—
“मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति ।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत् ।”
अर्थः–घमण्ड को छोडकर व्यक्ति सबका प्रिय हो जाता है । क्रोध को छोड देने से चिन्ता नहीं होती । काम (वासना, इच्छा) को छोड देने से व्यक्ति अर्थवान् हो जाता है । लोभ को छोड देने से व्यक्ति सुखी हो जाता है "!!
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🍁सुंदर दिवसाच्या सुंदर शुभेच्छा🍁
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*शुभदिनमस्तु"!!*
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