Sunday, September 18, 2016

नित्य कर्म प्रधानम्"

*सुमंगलम् भवतु*"✍
!! *श्री मन्महागणाधिपतये नमः*"!!
*आदरणीय मित्रों यहाँ हम आप लोगों के साथ कुछ रोचक जानकारियां साझा कर रहे हैं, रोचक ही नहीं परम सत्य भी है*"
*आशा करते हैं कि आप सभी लाभान्वित होंगे*"!
�� *नास्ति सत्यसमों धर्मः*"
*सत्य के समान कोई धर्म नहीं है*"
*गीता में भी कहा गया है*"
*सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं, सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये*"!
*सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं, सत्यात्मकं त्वाम् शरणं प्रपंन्नाः*"!!
*अर्थात्-"प्रभो ! आप सत्य संकल्प हैं ! सत्य ही आप की प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है ! सृष्टि के पूर्व प्रलय के पश्चात और संसार की स्थिति के समय इन असत्य अवस्थाओं में भी आप सत्य हैं"! पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पाँच दृश्यमान सत्यों के आप ही कारण हैं" आप इस दृश्यमान जगत के परमार्थ स्वरूप हैं' आप ही मधुर वाणी और समदर्शन प्रवर्तक हैं"! भगवन् ! आप तो बस सत्य स्वरूप ही हैं" हम सब आप की शरण में आये हैं*!!
1) �� *कुर्याद् द्वादश गण्डूषान् पुरीषोत्सर्जने ततः*!
*मुत्रोत्सर्गे तु चतुरो भोजनांन्ते तु षोडश*!!
*मल त्याग के बाद 12, मूत्र त्याग के बाद 4, और भोजन के बाद 16 कुल्ले करने चाहिए*"!!
2) �� *मध्यमानामिकाभ्यां च वृद्धाङ्गुष्ठेन् च द्विजः" दन्तस्य धावनं कुर्यान्न तर्जन्या कदाचन्*!!
*मध्यमा, अनामिका अथवा अंगुठे से दांत साफ करें किंतु तर्जनी अंगुली से कदापि न करें*" *पद्म पु*,"
3) �� *उच्चारे मैथुने चैव प्रस्त्रावे दंतधावने" श्राद्धे भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत्*"!!
*मल, मूत्र, मैथुन, दंतधावन श्राद्ध और भोजन के समय मौन रहना चाहिए*"!!
4)�� *जम्हाई आने पर चुटकी बजायें, छीकनें पर शतं जीवेत् शरदः कहें, अधोवायु, थूक, तथा नेत्रों में जल आने पर दाहिना कान अंगूठे से स्पर्श करना चाहिए*"!!
5)��  *तैलाभ्यङ्गे रवौ तापः सोमें शोभा कुजे मृतिः" बुधे धनं गुरौ हानिःशुक्रे दुःखं शनौ सुखम्*"!!
*रवौ पुष्पं गुरौ दुर्वा भौमवारे च मृत्तिका " गोमयं शुक्रवारे च तैलाभ्यङ्गे न दोषभाक्*!!
*नित्यमभ्यङ्गके चैव वासिते नैव दूषणम्*"!!
*रविवार को तेल लगाने से ताप, मंगलवार को मृत्यु, गुरूवार को हानि तथा शुक्रवार को दुःख होता है"! सोमवार को शोभा, बुधवार को धन और शनिवार को सुख होता है"! यदि निषिद्ध चारों में तेल लगाना हो तो" रविवार को तेल में पुष्प,  गुरूवार को दुर्वा, मंगलवार को मृत्तिका, और शुक्रवार को गोबर डाल कर लगाएँ"! इसमें दोष नहीं होता"! सुगंधित तेल" तथा प्रतिदिन तेल लगानेवाले को दोष नहीं लगता" !!(ज्यो, सा,*)
6) �� *मनुष्य के शरीर में प्रधान 9 छिद्र हैं, वे रात्रि में शयन करने से अपवित्र हो जाते हैं" इसलिए प्रातः स्नान अनिवार्य है*"!!
*निपानादुद्भृतं पुण्यं ततः प्रस्त्रवणोदकम्* !
*ततोऽपि सारसं पुण्यं ततो नादेयमुच्यते* !
*तीर्थतोयं ततः पुण्यं गङ्गातोयं ततोऽधिकम्*"!!
*कुँए के जल से झरने का, झरने से सरोवर का, सरोवर से नदी का, नदी से तीर्थ का, और तीर्थ से गंगा जी का जल श्रेष्ठतर होता है, "(अग्निपु*,)
7)�� *तिलक किये बिना संध्या, पितृकर्म और देवपूजा न करें " चंदनादि के अभाव में जलादि से तिलक करें*"!
*अनामिका शान्तिदोक्ता मध्यमायुष्करी भवेत्*!
*अङ्गुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्तःतर्जनी मोक्षदायनी*!!
*तिलक करने में अनामिका शांति देने वाली, मध्यमा आयु बढाने वाली, अंगुष्ठ पुष्टि देने वाला, और तर्जनी मोक्षदायनी होती है" (स्कं, पु*,)!!
8)�� *गृहे चैकगुणः प्रोक्तः गोष्ठे शतगुणः स्मृतः"पुण्यारण्ये तथा तीर्थे सहस्त्रगुणमुच्यते*"!
*अयुतः पर्वते पुण्यं नद्यां लक्षगुणो जपः" कोटिदेॅवालये प्राप्ते अनंतं शिवसन्निधौ* !!
*घर में जप करने से एक गुना, गौवों के समीप सौ गुना, पवित्र वन या तीर्थ में हजार गुना, पर्वत पर दश हजार गुना, नदी तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना तथा शिव के समीप अनंत गुना फल प्राप्त होता है*"!!
9)�� *यस्मिनस्थाने जपं कुर्यात् शक्रो हरतितत्जपम्"तन्मृदा लक्ष्म कुर्वीत ललाटे तिलकाकृतिम्*"!!
*जिस आसन पर बैठकर जप किया हो उसके नीचे की मृत्तिका मस्तक में लगाएँ" ऐसा न करने पर जप का फल इंद्र ले लेते हैं*"!!
10)�� *संध्याहीनोऽशुचिनिॅत्यमनर्हः सर्वकर्मसु" यदन्यत्कुरुते कर्म न तस्य फलभाग्भवेत्*"!!
*ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य यदि संध्या नहीं करते तो वे अपवित्र रहते हैं और उन्हें किसी भी पुण्य कर्म का फल नहीं मिलता*"!!
11)�� *पादशेषं पीतशेषं संध्याशेषं तथैव च" शुनो मूत्रसमं तोयं पीत्वा चान्द्रायणं चरेत्*"!!
*पैर धोने से, पीने से, और संध्या करने से बचा हुआ जल स्वान मूत्र के समान हो जाता है" उसके पीने पर चांद्रायम व्रत करने से मनुष्य शुद्ध होता है" इस लिए उसे फेंक देन चाहिए*"!!
*नित्य कर्म पद्धति से*"!!
*धन्यवादः*"
*☼ ☼ ☼ ☼ ☼ ☼*
*सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु" सर्वेषां शान्तिर्भवतु*" *सर्वेषां पूर्णं भवतु "सर्वेषां मङ्गलं"भवतु*"!!
*विजयी भव सर्वत्र* !
*सर्वदा, जयतु* !!
*ऊँ नमों वासुदेवाय*"
*नमोंराघवाय" शुभदिनमस्तु* !!
*सुशील मिश्रः*
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